अच्छों के साथ अच्छा, बुरे के साथ बुरा

 लेखक - रंजीत केरकेटटा

महाराजा जयचंद, जय देश का शासक था। उसने दो शादियां की थी, उसकी पहली पत्नी का देहांत
 हो चुका था, उसकी एक बेटी थी। उसका नाम मीरा था। अब राजा की दूसरी पत्नी ही उस देश 
की महारानी थी, उसकी भी एक  बेटी थी। उसका नाम सुकन्या था। मीरा और सुकन्या की उम्र 
लगभग समान थी। राजा को लकवा  था, इसलिए  वह हमेशा बेड पर ही पड़े रहते थे। राज्य की
 शासन-व्यवस्था उनकी दूसरी पत्नी के हांथो में था।
 महारानी, राजा की पहली पत्नी की बेटी मीरा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी। वह 
उससे अच्छे कपड़े, अच्छा खाना नहीं देती थी, उसे हमेशा एक नौकरानी की तरह रखती थी। पर वहीं 
 महारानी अपनी बेटी सुकन्या को बहुत अच्छे  कपड़े और उसकी सारी आवश्यकता को पूरा करती थी,
 उसे महल की सारे सुख सुविधा देती थी। यह सब देख राजा को बहुत बुरा लगता था, पर राजा कर भी
 क्या सकते थे, वो तो ऐसे ही लाचार थे। ऐसे भी सभा में अब उनकी बात नहीं चलती थी। सब महारानी
 की बात पर चलते थे। मीरा, महारानी की बेटी सुकन्या से ज्यादा सुंदर थी। इसलिए महारानी मीरा को 
महल के बाहर एक छोटे से घर में रखती थी और उसे फटे-पुराने कपड़े पहनने को देती थी।  खाने में
 उससे बचा हुआ खाना, भूसे की रोटी देती थी। जिससे वह बीमार रहे और अपनी बेटी सुकन्या से ज्यादा
 सुंदर ना दिखे। इसी कारण मीरा बहुत उदास रहती थी और रात भर रो-रो कर अपनी मां को याद किया
 करती थी।
        एक दिन रात में जब मीरा सो रही थी तो उसकी मां उसके सपने में आयी। उसकी मां ने उससे
 कहा- "बेटी मै जानती हूं तुम बहुत उदास और परेशान हो। बेटी तुम कल से हर दिन सुबह उठकर जंगल
 जाना, वहां बहुत सारे फलदार पेड़ है उसमें बहुत सारे फल लगे हैं, तुम उसे खाना।" दूसरे दिन मीरा सुबह
 उठकर जंगल की ओर चल पड़ी। वहां उसे उसकी मां के दिखाए हुए जगह पर बहुत सारे फलदार पेड़ दिखाई
 दिए जिसमें बहुत सारे फल लगे हुए थे। यह देख कर मीरा बहुत खुश हो गई और उन पेड़ों से पके हुए फल
 तोड़ - तोड़ कर खाने लगी। अब उसका पेट भर गया और वह वापस लौट गई। अब मीरा हर दिन ऐसे ही सुबह
 उठकर जंगल जाती और उन फलों को खा कर अपना पेट भर लेती। कुछ दिन बीतने के बाद अब वह पहले की
 तरह सुंदर दिखने लगी थी। एक दिन महारानी की नजर मीरा पर पड़ी और उसने देखा कि वह पहले की तरह 
सुंदर दिखने लगी है। महारानी मीरा को देखकर सोचने लगी कि "मैं तो इसे अच्छा खाना नहीं देती हूं फिर भी ये
 इतनी अच्छी कैसे दिखाई दे रही है, जरूर इसे कोई अच्छा खाना खाने को दे रहा है।" महारानी ने तुरंत अपने 
बेटी सुकन्या को बुलाया और उससे कहा  "तुम मीरा को चुपके से देखना कि मीरा कहां जाती है, क्या खाती है?"
         दूसरे दिन सुबह जब मेरा जंगल की ओर जा रही थी तभी सुकन्या भी चुपके से उसके पीछे हो ली। 
जंगल पहुंचकर सुकन्या ने देखा कि वहां बहुत सारे फलदार पेड़ हैं और उनमें बहुत सारे फल लगे हुए हैं। मीरा 
उन्हें ही तोड़ - तोड़ कर खा रही है। यह देखकर सुकन्या भी पेड़ों के पास जाकर फलों को तोड़ने की कोशिश 
करने लगी, पर जब भी वह फल  तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाती तो फल वाली डाली ऊपर उठ जाती। बहुत कोशिश
 करने के बावजूद भी सुकन्या एक भी फल ना खा सकी। वह बिना खाए ही महल लौट गई और महल पहुंच कर
 अपनी मां(महारानी) को सारी बात बता दी। यह सब सुनकर महारानी को बहुत गुस्सा आया। दूसरे दिन महारानी 
ने अपने सैनिकों को बुलाया और यह आज्ञा दी कि वे जंगल में जाए और उन सभी फलदार पेड़ों को काट दे। 
सैनिक महारानी की आज्ञा मान कर जंगल गए और उन सभी पेड़ों को काट दिया। यह देखकर मीरा उदास हो गई। 
अब महारानी मीरा को पहले से ज्यादा सताने लगी। मीरा को खाने में पहले से भी कम और खराब खाना देने लगी।
 मीरा फिर से बीमार और कमजोर होने लगी।
         कुछ दिनों के बाद मीरा के सपने में फिर से उसकी मां आयी और मीरा से बोली- "बेटी जंगल में 
बहुत सारी गाय हैं। तुम जाकर उनका दूध पियो।" दूसरे दिन मीरा सुबह उठकर जंगल की ओर चल पड़ी। जंगल 
में उसकी मां ने जिस जगह उसे दिखाया था वहां बहुत सारी गाय दिखाई दी। मीरा अब खुश होकर उनका दूध
 पीने लगी, गाय भी उसे कुछ नहीं करती थी। मीरा अब हर दिन सुबह उठकर जंगल चली जाती। धीरे-धीरे मीरा
 अब पहले की तरह सुंदर दिखने लगी। कुछ दिनों के बाद फिर से महारानी की नजर मीरा पर पड़ी। मीरा को 
पहले की तरह सुंदर देख महारानी ने सुकन्या को फिर से अपने पास बुलाकर मीरा के पीछे जाने को कहा। दूसरे
 दिन जब मीरा सुबह जंगल की ओर जा रही थी तो सुकन्या भी उसके पीछे चल पड़ी। जंगल में जाने के बाद 
सुकन्या ने देखा कि वहां बहुत सारी गाय हैं मीरा इन्हीं गाय का दूध पी रही थी। मीरा को देख सुकन्या भी उन
 गायों का दूध पीना चाही, पर जब भी वह गाय के पास जाती तो गाय उसे भगा देते। इस तरह वह दूध पी 
ना सकी। और महल आकर अपनी मां को सारी बात बता दी। दूसरे दिन महारानी ने अपने सैनिकों को बुलाकर 
जंगल की सारी गायों को जंगल से दूर भागने का आदेश दिया। दूसरे दिन सैनिकों ने ऐसा ही किया। मीरा अब 
यह सब देख कर परेशान हो चुकी थी।
       दूसरे दिन मीरा के सपने में फिर से उसकी मां आयी। मीरा ने सपने में अपनी मां से कहा -"मां मैं 
अब थक चुकी हूं और मुझसे सहन नहीं होता।" तो उसकी मां ने उससे कहा -"बेटी अब तुम जवान हो चुकी 
हो, तुम्हें अब शादी कर लेना चाहिए, तुम अपने पिता से विदा लेकर अपने लिए अच्छा वर ढूंढने निकल जाओ,
 मैं तुम्हारे लिए अच्छा वर ढूंढने में मदद करूंगी, मैं तुम्हें बताऊंगी कि तुम्हें कहां जाना है।" दूसरे दिन सुबह 
मीरा अपनी मां की बात मान कर अपने पिता के पास गई और उनसे कहा- "पिताजी मैं अब शादी के लायक 
हो चुकी हूं, इसलिए मैं अपने लिए वर ढूंढने के लिए जाना चाहती हूं। इसके लिए आप मुझे आज्ञा दीजिए और 
अपना आशीर्वाद। राजा यह जानते थे की महारानी के रहते हुए मीरा की शादी नहीं हो सकती, इसीलिए राजा ने 
मीरा को जाने की आज्ञा दे दी। फिर मीरा अपनी सौतेली मां (महारानी) के पास गई और उसे भी अपनी इच्छा 
बताई। इस पर महारानी ने सोचा कि अच्छा है ये यहां से जा रही है, ऐसे भी ये अपने लिए वर ढूंढेगी तो कोई
 किसान या फिर ऐसे ही कोई गरीब इंसान ही शादी करने को मिलेगा। यह सोच कर मीरा को जाने की आज्ञा 
दे देती है। इसके बाद मीरा रास्ते में खाने के लिए कुछ सुखी रोटी जो आज उसे खाने को मिला था उसे ले कर
 वहां से, उसकी मां द्वारा बताए रास्ते पर निकल जाती है।
        बहुत दूर चलने के बाद मीरा को रास्ते में एक बुजुर्ग बाबा मिलते हैं। उन्होंने मीरा से कहा- "बेटी मैं 
 बहुत भूखा हूं, तुम्हारे पास कुछ खाने को है?" मीरा ने उन्हें उत्तर दिया -"बाबा मेरे पास खाने को बस दो सूखी
 रोटी है क्या आप उसे खाना पसंद करेंगे।"बाबा ने मीरा को "हां" में उत्तर दिया। मीरा ने उन्हें अपना रोटी खाने
 को दे दिया। रोटी खाने के बाद उस बाबा ने मीरा से कहा- "बेटी तुम बहुत अच्छी हो, मैं तुम्हे आशीर्वाद देता
 हूं कि तुम जिस काम के लिए जा रही हो इसमें तुम सफल हो।" और फिर बाबा ने मीरा को एक रास्ता दिखाया 
और कहा- "तुम इस रास्ते से जाना और रास्ते में तुम्हें एक छोटा तालाब मिलेगा, वहां तुम स्नान कर लेना। स्नान 
करने के बाद तुम आगे बढ़ जाना।" मीरा अब उसी रास्ते पर आगे बढ़ने लगी, रास्ते में उससे एक छोटा तालाब 
मिला और मीरा उस बाबा के कहे अनुसार उसमें स्नान करने जाती है। स्नान करने के बाद मीरा देखती है कि वो 
अब पहले से और भी ज्यादा सुंदर हो गई है और उसके कपड़े भी नए ही गए हैं। मीरा बहुत खुश हो जाती है 
और उसी रास्ते में आगे बढ़ जाती है। कुछ दूर जाने के बाद मीरा एक पेड़ के पास बैठ जाती है। वहां एक 
राजकुमार शिकार करता हुआ पहुंचा है और उसकी नजर मीरा पर पड़ती है। राजकुमार मीरा को देख कर मोहित
 हो जाता है। राजकुमार मीरा के पास जाकर उससे पूछता है - "तुम कौन हो और यहां अकेली क्या कर रही
 हो?" इस पर मीरा ने राजकुमार को बताया कि वह अपने लिए वर ढूंढने निकली है। राजकुमार ने मीरा से 
कहा -"क्या तुम मुझसे शादी करोगी"। तो मीरा ने राजकुमार को "हां" कह कर उत्तर दिया।इसपर राजकुमार 
बहुत खुश हो गया। राजकुमार मीरा को लेकर अपने राज्य चला गया और वहां मीरा से बड़े धूमधाम से शादी 
कर ली। शादी के बाद मीरा और राजकुमार, बहुत सारा उपहार लेकर मीरा के पिता के महल पहुंचे और उन्हें
 उपहारों को दिया। मीरा के पिता यह देख कर बहुत खुश हुए। पर ईधर मीरा के सौतेली मां(महारानी) मीरा 
को देख कर बहुत जलन करने लगी, महारानी ने कभी सोचा भी नहीं था की मीरा को इतना अच्छा राजकुमार 
मिलेगा। महारानी मीरा को अपने पास बुला कर उससे पूछने लगी कि वह राजकुमार से कैसे मिली, तो फिर 
मीरा ने सारी बात बता दी। इस पर महारानी ने सोचा कि मैं भी अपनी बेटी सुकन्या को ऐसे ही भेजूंगी और 
उससे भी ऐसे ही सुंदर राजकुमार मिलेगा। महारानी ने सुकन्या को अपने पास बुलाया और मीरा ने जैसा बताया
 था, उसी रास्ते पर जाने को कहा। दूसरे दिन महारानी सुकन्या के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनवा कर और 
अच्छे कपड़े दे कर महल से विदा की।
       सुकन्या में मीरा द्वारा बताए रास्ते पर जाने लगी। रास्ते में वही बुजुर्ग बाबा उसे मिले और सुकन्या से
 कहा-" बेटी तुम्हारे पास कुछ खाने को है?" तो फिर सुकन्या ने उस बाबा से गुस्से में कहा-"मेरी मां ने मेरे
 लिए अच्छे-अच्छे पकवान भेजे हैं पर मैं उससे आपको क्यों दूं, वह तो मेरे रास्ते के लिए हैं, इसीलिए मै नहीं
 दूंगी।" इस पर बाबा क्रोधित हो गए और सुकन्या को श्राप देते हुए कहा-" जाओ तुम जिस रास्ते से जाओगी 
उस रास्ते में बदबूदार पौधे होंगे।" यह कह कर बाबा आगे चले गए। सुकन्या रास्ते में आगे बढ़ने लगी। कुछ दूर
 चलने के बाद उसे वही बदबूदार पौधों मिले, जिससे हो कर उसे जाना पड़ रहा था। उस रास्ते पर चलने से 
सुकन्या के सारे कपड़े खराब हो गए और बदबूदार पौधों की गंध उस पर आ गई। बहुत दूर चलने के बाद भी 
उसे कोई शादी करने वाला ना मिला। तब फिर वह एक बाजार के पास गई और वहां कहने लगी-"मुझसे कोई
 शादी कर लो, मैं राजा की बेटी हूं।" पर फिर भी उससे कोई शादी करने को तैयार नहीं था। बहुत देर के 
बाद एक सूअर चराने वाला वहां आया हूं और सुकन्या से कहा "मैं तुमसे शादी करूंगा।" और उसने सुकन्या से
 शादी कर ली। अब दोनों महारानी और महाराजा से मिलने महल गए। महारानी सुकन्या को देखकर बहुत उदास
 हो गई और सुकन्या के लिए रोने लगी। इस पर महाराजा ने महारानी से कहा यदि तुम सुकन्या को अच्छी शिक्षा
 देती, लालच नहीं करती और मीरा से अच्छा व्यवहार रखती तो शायद आज ऐसा नहीं होता। यह सुन कर 
महारानी बहुत पछताने लगी।

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